कर्नाटक के बाद अब केंद्र सरकार में भी भाजपा अल्पमत में आ जाएगी!


कर्नाटक विधानसभा में भाजपा को 19 मई को बहुमत परीक्षण का समय मिला था. बहुमत परीक्षण से पहले ही मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया और बीजेपी की सरकार गिर गई. लेकिन इस दौरान एक बड़ा असर और हुआ. वो ये कि केंद्र सरकार में भी भाजपा अल्पमत में आने की स्थिति में है.

दरअसल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा के दो सांसद विधानसभा का चुनाव लड़े और जीत गए. इनके नाम हैं बी.एस.येदियुरप्पा और बी. श्रीरामुलु. जीतने के बाद उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दिया और विधायक पद की शपथ ली. येदियुरप्पा शिमोगा सीट, तो श्रीरामुलु बेल्लारी से सांसद थे. लोकसभा अध्यक्ष के पास उनका इस्तीफा पहुंच गया है. वो 14 दिन में इस पर फैसला लेंगी. अगर वो इन दोनों का इस्तीफा स्वीकार करती हैं तो भाजपा सदन में बहुमत के आंकड़े से नीचे आ जाएगी.




इनका इस्तीफा स्वीकार होते ही भाजपा के लोकसभा सांसदों की संख्या बहुमत से कम हो जाएगी. भाजपा ने 2014 में 282 लोकसभा सीटें जीती थीं.
2014 लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के आठ सांसदों का निधन हो चुका है. इनमें से छह सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं और दो पर 28 मई को होने हैं.
इन छह सीटों में बीड़ (महाराष्ट्र), शहड़ोल (एमपी) पर भाजपा और रतलाम (एमपी), गुरुदासपुर (पंजाब), अजमेर, अलवर (राजस्थान) सीटों पर कांग्रेस जीती. कैराना (यूपी) और पालघर (महाराष्ट्र) में अभी उपचुनाव होने हैं.

2014 में नरेंद्र मोदी ने दो लोकसभा सीटों बनारस और वडोदरा पर चुनाव लड़ा था. दोनों पर जीत के बाद वडोदरा से मोदी ने इस्तीफा दे दिया था. इस सीट पर उपचुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की थी. असम के सीएम बनने के बाद सर्बानंद सोनोवाल के इस्तीफे से खाली हुई असम की लखीमपुर सीट पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की.

इसके अलावा यूपी में सरकार बनाने के बाद गोरखपुर सांसद योगी आदित्यनाथ और फूलपुर सांसद केशव प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दे दिया था. उपचुनाव में इन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की.
अब येदियुरप्पा और श्रीरामुलु के इस्तीफों के बाद दो और सीटें खाली हो जाएंगी. इस स्थिति में इन पर भी छह महीने के अंदर उपचुनाव होंगे.
इसके बाद भाजपा के पास अब स्पीकर को मिलाकर 269 सांसद बचेंगे जो फिलहाल 271 हैं. अभी तीन सीटें खाली हैं. मतलब अभी लोकसभा में 541 सीटें हैं. और भाजपा बहुमत की स्थिति मतलब आधे से एक ज्यादा (270+1) है. अगर इन दोनों का इस्तीफा स्वीकार होता है तो सदन की कुल संख्या 539 होगी और भाजपा की संख्या 269 हो जाएगी. जो बहुमत की स्थिति, मतलब 269+1 से कम होगी.
साथ ही भाजपा के ही सांसद शत्रुध्न सिन्हा, सावित्री बाई फुले, राजकुमार सैनी पूरी तरह बाग़ी रुख़ अपनाए हुए हैं. कुछ दिन पहले पांच दलित सांसदों ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर दलितों के प्रति भाजपा सरकार की नीतियों पर नाखुशी जताई थी.
फिलहाल एनडीए के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत है. अगर भाजपा उपचुनावों में नहीं जीत पाती है और इनके इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तो वो खुद बहुमत के आंकड़े से नीचे रह जाएगी. और किसी भी बिल को लोकसभा से पास कराने के लिए उसे सहयोगी पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ेगा. सहयोगियों में से टीडीपी और टीआरएस पहले ही एनडीए सरकार का साथ छोड़ चुके हैं. एनडीए में फिलहाल शिवसेना भी बागी बनी हुई है.
बजट सत्र में विपक्षी पार्टियों ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की मांग की थी जिसे स्पीकर ने नहीं माना था. तब विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया था कि भाजपा के पास बहुमत नहीं है और उसके सहयोगी दल भी उसे समर्थन नहीं देंगे. इसलिए वो अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं करवा रही.
ऐसे में भाजपा को फिर से अकेले पूर्ण बहुमत की स्थिति में पहुंचने के लिए सभी उपचुनाव जीतने होंगे. या इन दोनों के इस्तीफे पर स्पीकर को भाजपा के पक्ष में फैसला लेना होगा. नहीं तो किसी भी बिल या अविश्वास प्रस्ताव आने की स्थिति में पूरी तरह सहयोगी दलों पर ही निर्भर रहना होगा.

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